Friday, January 23, 2015

वाराह अवतार (Varah Avatar)


पिछले पोस्ट (ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि की रचना) में बताए जितनी सृष्टि की रच लेने के बाद ब्रह्मा जी विचार करने लगे कि मेरी सृष्टि की वृद्धि नहीं हो पा रही है। जब वे इस विचार में मग्न थे तो उनका शरीर दो भागों में विभक्त हो गया जिनके नाम 'का' और 'या' (काया) हुये।। एक भाग से पुरुष उत्पन्न हुआ और दूसरे भाग से स्त्री। पुरुष का नाम स्वयंभुव मनु और स्त्री का नाम शतरूपा था।

ब्रह्मा जी ने स्वयंभुव मनु को आज्ञा दी, "हे पुत्र! तुम अपनी भार्या शतरूपा से सन्तान उत्पन्न करो और श्रमपूर्क इस पृथ्वी का पालन करो।"

उनकी आज्ञा सुनकर स्वयंभुव मनु बोले, "हे पिता! मैं आपकी आज्ञा का पालन अवश्य करूँगा, किन्तु पृथ्वी तो प्रलयकालीन जल में निमग्न है, मेरी सन्तानें अर्थात् प्रजा निवास कहाँ करेगी? कृपा करके आप पृथ्वी को जल से बाहर निकालने का प्रयत्न करें।"

स्वयंभुव मनु की बात सुनकर ब्रह्मा जी कुछ क्षणों के लिए विचारमग्न हो गए। उसी क्षण उन्हें एक छींक आई और उनके नासिका छिद्र से अंगुष्ठ प्रमाण का एक प्राणी बाहर आ गिरा। देखते ही देखते वह प्राणी पर्वताकार हो गया और शूकर के रूप में घुर्राने लगा। उसे देखकर ब्रह्मा जी समझ गए कि भगवान विष्णु ने पृथ्वी को जल से बाहर लाने के लिए वाराह का अवतार धारण कर लिया है।

भगवान वाराह प्रलयकालीन अथाह जल में कूद कर रसातल में जा पहुँचे और पृथ्वी को अपनी दाढ़ों पर लेकर बाहर के लिए निकले। उन्हें पृथ्वी को ले जाते देख कर दैत्य हिरण्याक्ष ने ललकार का गदा का प्रहार किया। वाराह भगवान ने उस प्रहार को रोककर उस दैत्य का वध कर दिया। जब वाराह भगवान जल से निकले तो ब्रह्मा सहित मरीचि आदि मुनियों ने उनकी स्तुति की।

मुनियों द्वारा अपनी स्तुति से प्रसन्न वाराह भगवान ने रसातल से लाई हुई पृथ्वी को जल पर रख दिया और अन्तर्धान हो गये।

3 comments:

Unknown said...

Padh kar mujhe Anand Aya
Aur Gyan Milla .

Unknown said...

Good

Unknown said...

यह सुखासगर में भी पड़ा था ओर अभी यह पड़ कर बहुत अच्छा लगा